Forest Right Titles :वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006, जिसे ‘अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ के रूप में जाना जाता है, भारत में पारंपरिक वन-निवास समुदायों और आदिवासी आबादी के अधिकारों को सुरक्षित करने का प्रयास करता है। यह कानून उन लोगों को जो वन्यजनों के साथ साझा रहते हैं, उनके अधिकारों को पहचानता है और उन्हें ज़मीन के मालिक के रूप में स्थापित करता है। इसका उद्देश्य उन्हें समृद्धि, सुरक्षा, और न्याय देना है। यह कानून 29 दिसंबर 2006 को लागू हुआ था और इसे अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि जनजातीय विधेयक और जनजातीय भूमि अधिनियम।
वन अधिकार अधिनियम पर हालिया अपडेट | Recent Updates on Forest Rights Act
Forest Right Titles सितंबर 2021 में, जम्मू और कश्मीर सरकार ने वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 को लागू करने का निर्णय लिया है, इससे केंद्र शासित प्रदेश में जनजातियों और खानाबदोश लोगों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार होने का प्रयास किया जा रहा है। विशेषकर, गुर्जर-बकरवाल और गद्दी-सिप्पिस क्षेत्रों में इस निर्णय का समर्थन है। यह सरकार का प्रयास है ताकि यहाँ के निवासियों को वन्यजनों का उपयोग करने में सहायता मिले और उनकी जीवनशैली में सुधार हो। यह निर्णय जम्मू और कश्मीर के वन्यजनों की सशक्तिकरण और समृद्धि की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
वन अधिकार अधिनियम का विकास और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि·Forest Right Titles
Forest Right Titles इतिहास के दौरान, 856 में लॉर्ड डलहौजी ने पहली बार भारत में एक वन नीति की आवश्यकता पर बल दिया, जिसका मुख्य कारण रेलवे लाइनों के विस्तार के लिए लकड़ी की आपूर्ति में कठिनाई थी। 1865 में, भारतीय वन अधिनियम ने वनों पर ब्रिटिश दावों को विस्तृत किया, जो 1878 में और वन अधिनियम 1878 में ब्रिटिश एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास किया गया। 1927 में, भारतीय वन अधिनियम ने राज्य की संपत्ति के रूप में वनों को नामित किया और पारंपरिक अधिकारों को समाप्त करने का प्रयास किया। यह अधिनियम तीन प्रकार के वनों को वर्गीकृत करता है: आरक्षित, संरक्षित, और गाँव के जंगल। यही वन नीति लंबे समय तक चली, जब तक कि अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के अधिकारों की मान्यता देने के लिए 2006 में एक नया अधिनियम पारित नहीं किया गया।
वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 क्या है–Forest Right Titles
Forest Right Titles वन अधिकार अधिनियम, 2006, जिसे संसद ने 2006 में पारित किया, समुदायों और आदिवासी आबादी (अनुसूचित जनजातियों) के अधिकारों पर केंद्रित है। इस अधिनियम के माध्यम से, जो देश में वनों और अन्य संसाधनों पर निवास करते हैं, उन्हें लोकल वन्यजनों के अधिकारों का कानूनी प्राधिकृत्य मिला है। इसका उद्देश्य वन कानूनों की निरंतरता के कारण दशकों से वंचित समुदायों को समृद्धि में शामिल करना है और उन्हें आपने स्थानीय संसाधनों के प्रबंधन में सकारात्मक योगदान का अधिकार है। यह अधिनियम समुदायों को उनके परंपरागत वन-निवासी अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है और उन्हें आंशिक रूप से ठीक करने का प्रयास करता है, जो उन्हें वन्यजनों के साथ न्यायपूर्ण संबंध स्थापित करता है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006 के उद्देश्य | Objectives of Forest Rights Act, 2006
Forest Right Titles वन अधिकार अधिनियम, 2006 का मुख्य उद्देश्य समुदायों और आदिवासी जनजातियों को उनके परंपरागत वन्यजनों और संसाधनों के साथ न्यायपूर्ण समायोजन में मदद करना है। इस अधिनियम के तहत, समुदायों को धरोहरी अधिकारों की सुरक्षा और प्राधिकृति करने का अधिकार प्रदान किया जाता है।
इसके साथ ही, उन्हें स्थानीय वन्यजन और संसाधनों के प्रबंधन में सकारात्मक योगदान करने का अधिकार भी है। यह उन्हें स्वायत्तता और अपने संसाधनों का सुरक्षित और सही ढंग से उपयोग करने का माध्यम प्रदान करता है, जिससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हो।
वन अधिकार के चार प्रकार | Four Types of Forest Rights
Forest Right Titles वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुसार, चार प्रकार के वन अधिकार प्रदान किए गए हैं।
- पहला है “अर्थिक दृष्टि से असहमति” जिसमें समुदायों को अपने वन्यजनों का अर्थिक उपयोग करने में असहमति होने पर अधिकार प्राप्त होता है। दूसरा है “अर्थिक दृष्टि से सहमति” जिसमें समुदायों को वन्यजनों का अर्थिक उपयोग करने में सहमति होने पर अधिकार होता है।
- तीसरा है “अनुसूचित जनजातियों के धार्मिक और सांस्कृतिक उपयोग” के लिए अधिकार और चौथा है “जनसामाजिक समायोजन के लिए वन्यजनों का अर्थिक उपयोग” के लिए अधिकार। यह अधिनियम समुदायों को वन्यजनों के प्रबंधन और उपयोग में सकारात्मक योगदान करने का अधिकार प्रदान करके उनकी स्थानीय समृद्धि को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है।
वन अधिकार अधिनियम के प्रावधान | Provisions of Forest Rights Act
Forest Right Titles वन अधिकार अधिनियम, 2006 के प्रावधान वन्यजनों के प्रबंधन और उपयोग के क्षेत्र में समुदायों को महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है। प्रथमत: इसके तहत, समुदायों को अपने परंपरागत वन्यजनों का संरक्षण, प्रबंधन, और उपयोग करने का अधिकार होता है।
इससे वन्यजनों के सुरक्षित और सही ढंग से उपयोग की संभावना बढ़ती है। दूसरा, अर्थिक दृष्टि से असहमति और सहमति के अधिकारों के माध्यम से समुदायों को उनके वन्यजनों का आर्थिक उपयोग करने में स्वतंत्रता मिलती है। यह अधिनियम अन्यायपूर्ण वन्यजन प्रबंधन सिद्धांतों के खिलाफ एक कदम है और समुदायों को उनके स्थानीय संसाधनों के प्रबंधन में सहयोग करने का एक माध्यम प्रदान करता है।
Forest Right Titles वन अधिकार अधिनियम, 2006 के प्रावधान वन्यजनों के प्रबंधन और उपयोग के क्षेत्र में समुदायों को महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करता है। प्रथमत: इसके तहत, समुदायों को अपने परंपरागत वन्यजनों का संरक्षण, प्रबंधन, और उपयोग करने का अधिकार होता है। इससे वन्यजनों के सुरक्षित और सही ढंग से उपयोग की संभावना बढ़ती है। दूसरा, अर्थिक दृष्टि से असहमति और सहमति के अधिकारों के माध्यम से समुदायों को उनके वन्यजनों का आर्थिक उपयोग करने में स्वतंत्रता मिलती है। यह अधिनियम अन्यायपूर्ण वन्यजन प्रबंधन सिद्धांतों के खिलाफ एक कदम है और समुदायों को उनके स्थानीय संसाधनों के प्रबंधन में सहयोग करने का एक माध्यम प्रदान करता है।
इन वन अधिकारों का दावा करने की पात्रता क्या है? | What is the eligibility to claim these forest rights?
इन वन अधिकारों का दावा करने के लिए कुछ मुख्य पात्रता मानक हैं। प्राथमिक रूप से, उस व्यक्ति या समुदाय को इस क्षेत्र के वन्यजनों का अपनाने वाला रिकॉग्नाइज्ड स्थानीय निवासी होना आवश्यक है। उन्हें इस स्थान के परंपरागत वन्यजनों के साथ संबंधित अधिकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए।
साथ ही, व्यक्ति या समुदाय को उनके वन्यजनों के Forest Right Titles उपयोग के लिए स्थानीय प्रबंधन की क्षमता दिखानी चाहिए, जिससे वन्यजनों का सही ढंग से प्रबंधन हो सके। इसके लिए स्थानीय समुदाय को सकारात्मक रूप से योजना बनाने और क्रियान्वित करने की क्षमता होनी चाहिए।
इसके अलावा, जो भी व्यक्ति या समुदाय इन अधिकारों का दावा करता है, उन्हें संबंधित सरकारी प्राधिकृतियों के साथ सहयोग करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए।